रांची: झारखंड के जनजातीय स्कूल और कॉलेज इन दिनों गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2025–26 के लिए सरकारी अनुदान हेतु आवेदन को लेकर शुरू किए गए नए ऑनलाइन पोर्टल में लगातार आ रही तकनीकी गड़बड़ियों के कारण बड़ी संख्या में शैक्षणिक संस्थान अब तक आवेदन नहीं कर पाए हैं। जबकि आवेदन की अंतिम तिथि नजदीक है, ऐसे में जनजातीय क्षेत्रों के स्कूलों और कॉलेजों के अनुदान से वंचित होने की आशंका बढ़ती जा रही है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि नए अनुदान पोर्टल में A, B और C श्रेणी का कोई विकल्प नहीं दिया गया है। जबकि वर्ष 2015 की नियमावली के तहत झारखंड में जनजातीय उप-योजना क्षेत्र के स्कूलों और कॉलेजों को अलग-अलग श्रेणियों में अनुदान मिलता रहा है। श्रेणियों के अभाव में कई संस्थानों को यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि उन्हें किस मद में और कितनी राशि के लिए आवेदन करना है।
इस समस्या से गुमला, सिमडेगा, खूंटी, चतरा, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां और संथाल परगना क्षेत्र के जनजातीय बहुल जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। इन इलाकों के कई स्कूल और कॉलेजों का कहना है कि नया पोर्टल उनकी भौगोलिक और सामाजिक श्रेणी को पहचान नहीं पा रहा है, जिससे आवेदन प्रक्रिया बीच में ही अटक जा रही है।
तकनीकी स्तर पर यू-डायस कोड और ई-विद्यावाहिनी पासवर्ड को लेकर भी परेशानी सामने आ रही है। कई संस्थानों के पास वैध कोड और पासवर्ड होने के बावजूद पोर्टल पर लॉग-इन करने पर डेटा का मिलान नहीं हो पा रहा, जिससे अनुदान फॉर्म खुल ही नहीं रहा। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में कमजोर इंटरनेट, बिजली की अनियमित आपूर्ति और पोर्टल का बार-बार हैंग होना समस्या को और गंभीर बना रहा है। कई प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों का कहना है कि घंटों प्रयास के बाद भी आवेदन पूरा नहीं हो पा रहा।
अब तक दर्जनों जनजातीय स्कूलों और इंटर कॉलेजों ने शिक्षा विभाग को लिखित रूप से इस समस्या से अवगत कराया है। संस्थानों की मांग है कि या तो पोर्टल की तकनीकी खामियों को जल्द दूर किया जाए या फिर आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाई जाए, ताकि किसी भी स्कूल या कॉलेज को केवल तकनीकी कारणों से अनुदान से वंचित न होना पड़े।
शिक्षा से जुड़े संगठनों और शिक्षक प्रतिनिधियों का कहना है कि समय पर समाधान नहीं होने की स्थिति में इसका सीधा असर जनजातीय छात्रों की शिक्षा, संसाधनों की उपलब्धता और संस्थानों के संचालन पर पड़ेगा। कई छोटे स्कूल और कॉलेज पूरी तरह सरकारी अनुदान पर निर्भर हैं और अनुदान नहीं मिलने पर उनके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो सकता है। फिलहाल जनजातीय स्कूल और कॉलेज विभागीय निर्देश और राहत का इंतजार कर रहे हैं।
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