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रांची में बुलडोजर की तैयारी, नगर निगम की गलती से 40 परिवारों पर उजड़ा आशियाना


रांची के खादगढ़ा महुआ टोली इलाके में रहने वाले करीब 40 गरीब परिवारों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है। रांची नगर निगम ने इन परिवारों को मकान खाली करने का नोटिस जारी किया है और निर्धारित समय सीमा के बाद इन घरों पर बुलडोजर चलाने की तैयारी की जा रही है। खास बात यह है कि ये मकान खुद नगर निगम द्वारा बनाए गए थे और गरीब व बेसहारा परिवारों को रहने के लिए आवंटित किए गए थे।

स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस जमीन पर ये मकान बने हैं, उसकी वैधानिक स्थिति की जांच नगर निगम को निर्माण से पहले करनी चाहिए थी। अगर जमीन को लेकर कोई गलती हुई है, तो उसका खामियाजा गरीब परिवार क्यों भुगतें। लोगों की मांग है कि पहले उन्हें वैकल्पिक आवास उपलब्ध कराया जाए, उसके बाद ही मकान खाली कराने की कार्रवाई हो।

जानकारी के अनुसार, ये परिवार पिछले 30 से 35 वर्षों से इन्हीं मकानों में रह रहे हैं। वर्ष 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के निर्देश पर गरीब और बेसहारा परिवारों के पुनर्वास के उद्देश्य से इस क्षेत्र में पक्के मकानों का निर्माण कराया गया था। हालांकि इतने वर्षों के बाद भी इन परिवारों को आज तक मकानों का स्थायी मालिकाना हक नहीं मिल सका।

नगर निगम ने हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए प्रभावित परिवारों को 15 जनवरी तक मकान खाली करने का नोटिस दिया है। निगम का कहना है कि जिस जमीन पर मकान बनाए गए थे, वह नगर निगम की नहीं थी, इसलिए निर्माण को अवैध माना गया है। वहीं स्थानीय निवासियों का कहना है कि कई मकानों पर वर्षों से होल्डिंग टैक्स लिया जा रहा है और बिजली-पानी के कनेक्शन भी नियमित रूप से दिए गए हैं, इसके बावजूद अब इन्हें अवैध करार दिया जा रहा है।

बताया जा रहा है कि कुल 40 मकानों को तोड़ने की योजना है, जिनमें से लगभग 30 मकानों को पहले होल्डिंग नंबर और जमीन का आवंटन भी दिया गया था। इससे इलाके में आक्रोश और भय का माहौल है। लोगों का कहना है कि सरकार ने ही उन्हें बसाया था और अब वही घर उनसे छीने जा रहे हैं।

मकान टूटने की आशंका से परिवारों की स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है और बुजुर्ग व महिलाएं मानसिक तनाव में हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि मकान टूटने की सूचना मिलने के बाद 55 वर्षीय एक बुजुर्ग की सदमे से मौत हो गई। लोगों का कहना है कि प्रशासन की इस कार्रवाई से गरीबों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है और अब उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि वे जाएं तो जाएं कहां।

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