पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा क्षेत्र के दुर्गम चुरगी गांव में दो महिलाओं की मौत ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। इन मौतों के बाद हरकत में आए स्वास्थ्य विभाग के राज्य और जिला स्तरीय मेडिकल दल ने बुधवार को गांव का दौरा किया, लेकिन जांच के दौरान सामने आई स्थिति ने इलाज से ज्यादा सिस्टम की लाचारी और लापरवाही की तस्वीर पेश की।
मेडिकल टीम जब मृतका तुरी चंपिया (35) के घर पहुंची, तो परिजनों ने बताया कि वह पिछले छह महीनों से लगातार बीमार थी। उसे बार-बार बुखार आता था, लेकिन इस दौरान न तो कोई स्वास्थ्यकर्मी गांव पहुंचा और न ही सरकारी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई गई। मजबूरी में परिजनों को निजी क्लीनिक का सहारा लेना पड़ा, जहां न तो समुचित जांच हो सकी और न ही बीमारी की सही पहचान हो पाई।
राज्य मलेरिया निरीक्षक जयंतदेव सिंह ने स्वीकार किया कि दोनों महिलाओं की समय पर जांच नहीं हो सकी। उन्होंने बताया कि एक महिला की मौत लंबे समय से चली आ रही बीमारी के कारण हुई है, जिसमें टीबी की आशंका भी जताई जा रही है। उन्होंने यह भी माना कि चुरगी गांव मलेरिया जोन में आता है, बावजूद इसके यहां न तो जागरूकता अभियान चलाया गया और न ही नियमित जांच की व्यवस्था रही।
वहीं राज्य मलेरिया इंस्पेक्टर नीलम सिंह ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मनोहरपुर के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को निर्देश दिया कि सारंडा क्षेत्र में तत्काल मलेरिया जागरूकता अभियान शुरू किया जाए और घर-घर फॉगिंग कराई जाए। मेडिकल टीम ने कहा कि सभी जांच रिपोर्ट रांची भेजी जाएगी, जिसके बाद स्वास्थ्य निदेशक को अंतिम रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
इस बीच गांव वालों ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। सलाई समाजसेवी इंदा जामुदा ने मेडिकल टीम के सामने स्पष्ट कहा कि छोटानागरा पीएचसी में वर्षों से एंबुलेंस की मांग की जा रही है। यदि समय पर एंबुलेंस की सुविधा मिल जाती, तो शायद इन महिलाओं की जान बचाई जा सकती थी। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि साफ पानी और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में उन्हें गंदा पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं।
Post a Comment