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उद्योग विभाग में पंजीकरण को लेकर हाईकोर्ट सख्त, 1324 इकाइयों की जानकारी पर उठे सवाल


रांची: झारखंड हाईकोर्ट इस बात से हैरान है कि राज्य में उद्योग विभाग में अब तक केवल 1324 औद्योगिक इकाइयां ही निबंधित हैं। इस स्थिति को गंभीर मानते हुए मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने राज्य की सभी औद्योगिक इकाइयों को जून 2026 तक उद्योग विभाग में अनिवार्य रूप से निबंधन कराने का निर्देश दिया है।

न्यायालय ने संविदा पर नियुक्त, दैनिक वेतनभोगी और आकस्मिक कर्मचारियों को Employees Provident Fund and Miscellaneous Provisions Act, 1952 के तहत सामाजिक सुरक्षा देने में सरकार की ढिलाई पर भी कड़ी नाराजगी जताई। यह मामला वर्ष 2023 में पंकज कुमार बर्नवाल द्वारा दायर जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसमें इन कर्मचारियों को ईपीएफ के दायरे में लाने की मांग की गई थी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि अगस्त 2025 में क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त को उद्योग विभाग में निबंधित औद्योगिक इकाइयों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था। इसके बावजूद उद्योग विभाग ने पूरी जानकारी देने के बजाय केवल इकाइयों के नाम और आईडी उपलब्ध कराई। इसे कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उद्योग निदेशक पर अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी थी। बाद में उद्योग निदेशक विशाल सागर के अदालत में उपस्थित होकर स्थिति स्पष्ट करने के बाद अवमानना की कार्रवाई से छूट दी गई।

कोर्ट को यह जानकर भी आश्चर्य हुआ कि निबंधित 1324 औद्योगिक इकाइयों में से केवल 231 इकाइयों के कर्मचारियों को ही ईपीएफ के तहत सामाजिक सुरक्षा मिल रही है। इसे बेहद चिंताजनक बताते हुए न्यायालय ने राज्य की सभी औद्योगिक इकाइयों और उनमें कार्यरत कर्मचारियों की संख्या का पूर्ण विवरण उद्योग विभाग में दर्ज कराने का आदेश दिया है। इसके लिए जून 2026 तक की समयसीमा तय की गई है।

न्यायालय ने अगस्त 2025 में संयुक्त श्रमायुक्त द्वारा दायर शपथ पत्र पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने पर भी असंतोष व्यक्त किया। शपथ पत्र में बताया गया था कि विभिन्न विभागों में कार्यरत संविदा, दैनिक वेतन और आकस्मिक कर्मचारियों को ईपीएफ के तहत सामाजिक सुरक्षा देने का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा गया है, लेकिन चार महीने बीतने के बावजूद इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।

इसके अलावा होमगार्ड जवानों को सामाजिक सुरक्षा देने के मामले की भी समीक्षा की गई। कोर्ट ने याद दिलाया कि अगस्त 2025 में होमगार्ड जवानों को ईपीएफ के तहत लाभ देने का आदेश दिया गया था और इसके लिए आठ सप्ताह का समय भी तय किया गया था। इसके बावजूद सरकार ने दो दिसंबर 2025 को केवल एक समिति गठित करने की सूचना दी, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ईपीएफ के तहत सामाजिक सुरक्षा देना सरकार की वैधानिक जिम्मेदारी है और इसे टालने का कोई औचित्य नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 30 जनवरी 2026 को निर्धारित की गई है।

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