रांची: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को जमशेदपुर में आयोजित ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह में संथाली भाषा में गीत गाकर कार्यक्रम को खास बना दिया। राष्ट्रपति के गीत से पूरा माहौल सुरमयी हो गया और उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रहे। मंच पर मौजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी आंखें मूंदकर गीत का आनंद लेते नजर आए।
राष्ट्रपति ने ‘जोहार’ शब्द के साथ संथाली भाषा में अपना संबोधन शुरू किया। उन्होंने संथाली भाषा और संस्कृति के महत्व को रेखांकित करते हुए युवा पीढ़ी से अपनी मातृभाषा को सहेजकर रखने की अपील की। इससे पूर्व दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया।
मुख्यमंत्री और राज्यपाल का संबोधन
स्वागत भाषण के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी संथाली भाषा में लोगों को संबोधित किया। इस अवसर पर संथाली भाषा की ओलचिकी लिपि के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू को याद किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू एक महान लेखक, शिक्षक और विचारक थे, जिन्होंने अथक प्रयास से संथाली भाषा को उसकी अपनी लिपि दी।
राज्यपाल ने पश्चिम बंगाल के झारग्राम से लोकसभा सांसद कालीपाड़ा सोरेन, अखिल भारतीय संथाली राइटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लक्ष्मण किस्कू, जाहेरथान कमेटी के अध्यक्ष सीआर मांझी सहित सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की भाषा, संस्कृति और अस्मिता का जीवंत उत्सव है।
राज्यपाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीवन संघर्ष और उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए उन्हें आज की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहा कि यह उत्सव लोक संस्कृति, लोक स्मृति और सामुदायिक एकता को सशक्त करने वाला है, जो पीढ़ियों से समाज की पहचान को जीवित रखे हुए है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वर्ष 2003 में 92वें संविधान संशोधन के तहत संथाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।
योगदान देने वालों को मिला सम्मान
समारोह के दौरान ओलचिकी भाषा और संथाली साहित्य के संरक्षण एवं प्रचार में योगदान देने वाले कई लोगों को सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शोभानाथ बेसरा, दमयंती बेसरा, मुचीराम हेंब्रम, भीम मुर्मू, रामदास मुर्मू, छोटराय बास्के, निरंजन हांसदा, बीबी सुंदरमण, सौरभ राय, शिवशंकर कांडयान और सी.आर. मांझी को प्रशस्ति पत्र और मोमेंटो प्रदान कर सम्मानित किया।
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