रांची। केंद्र सरकार की प्रस्तावित विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (GRAMG) योजना को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने कड़ा ऐतराज जताया है। पार्टी का कहना है कि मनरेगा में किए जा रहे बदलावों से झारखंड को 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है और यह ग्रामीण मजदूरों को परेशान करने की साजिश है।
झामुमो के अनुसार, मौजूदा व्यवस्था में मनरेगा के तहत मजदूरी का शत-प्रतिशत भुगतान केंद्र सरकार करती है। लेकिन प्रस्तावित नई योजना में मजदूरी और सामग्री मद के खर्च का अनुपात बदलकर केंद्र 60 प्रतिशत और राज्य 40 प्रतिशत करने की तैयारी है। इससे झारखंड सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। विभागीय सूत्रों का अनुमान है कि केवल सामग्री मद में ही राज्य को 700 करोड़ रुपये से अधिक अतिरिक्त खर्च करना पड़ सकता है।
पार्टी ने आरोप लगाया कि यह बदलाव केवल वित्तीय ढांचे तक सीमित नहीं है, बल्कि मनरेगा जैसे अधिकार आधारित कानून को कमजोर करने की दिशा में कदम है। झामुमो का कहना है कि नई योजना के तहत ग्रामीण मजदूरों के काम के अधिकार को सीमित किया जाएगा और यह भी तय किया जाएगा कि किन इलाकों में योजना लागू होगी और किन में नहीं।
झामुमो ने यह भी दावा किया कि प्रस्तावित व्यवस्था में साल के कुछ महीनों के लिए काम के अधिकार को रोके जाने का प्रावधान किया गया है। साथ ही, केंद्र सरकार यह तय करेगी कि किसी राज्य को कितना बजट दिया जाएगा और जरूरत बढ़ने पर अतिरिक्त राशि देने से इनकार किया जा सकता है, जो सीधे तौर पर संवैधानिक अधिकारों पर हमला है।
पार्टी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि झारखंड के खनिज संसाधनों से होने वाली आय का उचित हिस्सा अब तक राज्य को नहीं मिला है, जबकि दूसरी ओर मनरेगा जैसी अहम योजना में राज्य से 40 प्रतिशत खर्च वहन करने को कहा जा रहा है। झामुमो ने मांग की कि केंद्र सरकार पहले झारखंड के बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये और अन्य लंबित योजनाओं की राशि जारी करे।
झामुमो ने चेतावनी दी है कि यदि मनरेगा कानून को खत्म या कमजोर करने की कोशिश की गई, तो झारखंड के मजदूर सड़क से लेकर संसद तक आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।
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